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कितना सफल रहा है जातिगत आरक्षण?

जागरण जंक्शन फोरम
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कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी द्वारा एससी, एसटी और ओबीसी कोटे में आरक्षण को खत्म कर आर्थिक आधार पर इसे लागू किए जाने की सलाह राहुल गांधी को देने के बाद एक बार फिर विवादित आरक्षण मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। गौरतलब है कि संविधान के लागू किए जाने के समय जातिगत आधार पर आरक्षण कोटा लागू किए जाने का एकमात्र आधार था कि इसे किसी तत्काल समय में जातिगत अभावों के कारण सामाजिक व्यवस्था में पिछड़ी जातियों को समान स्तर पर लाया जाए। 10 वर्षों तक इसकी सहायता से जातिगत आधार पर इस पिछड़ेपन के समाप्त होने के बाद यह कोटा भी समाप्त कर समान रूप से देश के विकासात्मक तमाम नीतियों को चलाने की बात थी। किंतु आज 65 वर्षों बाद भी ये कोटा खत्म होने की बजाय लगातार बढ रहा है। इसलिए इस बात पर विचार-विमर्श शुरू हो चुका है कि कितना सफल रहा है जातिगत आरक्षण?


जातिगत आरक्षण के समर्थकों का मत

संविधान की समतामूलक भावना हर वर्ग को समान रूप से आगे बढ़ने का अधिकार देती है। इसके लिए जो भी प्रयास किए जा सकते हैं करने चाहिए। जातिगत आरक्षण भी उन प्रयासों में एक है। इसकी कोई समयावधि निश्चित नहीं की जा सकती।


एससी, एसटी, ओबीसी के सभी वर्ग अब तक इन आरक्षणों का पूरा लाभ नहीं ले सके हैं। कई तबके ऐसे हैं जिन्हें आज भी इन आरक्षणों की जरूरत है।


भले ही जाति के आधार पर इन आरक्षणों का सम्पूर्ण लाभ न मिल पा रहा हो लेकिन इसने इन तबकों को लाभ दिया है और ऐसे कई लोग इसका लाभ लेकर ऊपर भी आए हैं।


जातिगत आरक्षण के विरोधियों का तर्क

जाति आधारित आरक्षण योग्यता के मूलभूत सिद्धांत का उल्लंघन करता है।


यह अपने उद्देश्य से विपरीत दिशा में जा रहा है। जहां जातिगत आरक्षणों का उद्देश्य केवल जाति विभेद से पैदा हुए पिछड़ेपन को खत्म कर देश के विकास को एक समान आधार पर लाना था वहीं यह आज अपने उद्देश्य से भटककर वर्ग विभेद को रेखांकित करते हुए पिछड़ेपन को खत्म करने में अक्षम रहा है।


एससी, एसटी और ओबीसी को जिस रूप में ये आरक्षण दिए जाते हैं उसका कोई लाभ नहीं है। जो वर्ग वास्तव में पिछड़ा है वह या तो इसका लाभ ले सकने की स्थिति में पहुंच ही नहीं पाता या उसे इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। ऐसे में इन आरक्षणों का लाभ उन्हें मिल रहा है जिन्हें इसकी जरूरत ही नहीं।


आरक्षण प्राप्त वर्ग अगर वरीयता पाकर आगे आते भी हैं फिर भी इनकी दक्षता पर सवालिया निशान हमेशा बना रहता है। इसके अलावे भले ही कोई कोटा का विद्यार्थी कोटे के उपयोग के बिना भी अगर चुना जाता है तब भी उसे सामान्य वर्ग के विद्यार्थी के बराबर सम्मान नहीं मिलता।


उपरोक्त मुद्दे के दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:

  1. क्या जातिगत आरक्षण का लाभ इसकी लक्षित जनता को मिल पा रहा है?
  2. क्या जाति आधारित आरक्षण संविधान की समतामूलक भावना का उल्लंघन है?
  3. जाति या आर्थिक या किसी अन्य आधार पर आरक्षण क्या वास्तव में लक्षित पिछड़ेपन को हटा सकती है? या यह उस वर्ग विशेष की क्षमता को एक सवालिया घेरे में लाकर उसके आत्मसम्मान पर कुठाराघात है?
  4. अगर आरक्षण पिछड़ेपन को हटाने का एक रास्ता है तो ऐसे में क्या इसका और कोई विकल्प हो सकता है जो समतामूलक भावना को भी नुकसान न पहुंचाए और इस पर राजनीति करने की संभावना भी नगण्य हो?
  5. आरक्षण सामाजिक आवश्यकता है या विशुद्ध राजनैतिक स्वार्थ?

    जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


    कितना सफल रहा है जातिगत आरक्षण?


    आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


    नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “जातिगत आरक्षण”  है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व “कितना सफल रहा है” – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


    2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


    3. अगर आपने संबंधित विषय पर अपना कोई आलेख मंच पर प्रकाशित किया है तो उसका लिंक कमेंट के जरिए यहां इसी ब्लॉग के नीचे अवश्य प्रकाशित करें, ताकि अन्य पाठक भी आपके विचारों से रूबरू हो सकें।


    धन्यवाद

    जागरण जंक्शन परिवार

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