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कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद जनता का विश्वास खो देगी ‘आप’?

जागरण जंक्शन फोरम
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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आए हुए एक लंबा समय बीत गया लेकिन स्पष्ट बहुमत ना मिल पाने के कारण कोई भी पार्टी अपनी सरकार बनाने में असफल रही। परंतु अब जबकि नवोदित ‘आम आदमी पार्टी’ ने कांग्रेस के सहयोग के साथ सत्ता संभालने की जिम्मेदारी उठा ली है तो खुद को भ्रष्टाचार से मुक्त पार्टी बताकर देश के सामने एक विकल्प पेश करने वाली आम आदमी पार्टी ही स्वयं सवालों के घेरे में आ गई है। ज्ञात हो कि आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अभी तक कांग्रेस और भाजपा के विरोधी के रूप में खुद को प्रचारित करते रहे हैं। यहां तक कि ‘आप’ की ओर से कांग्रेस को सबसे भ्रष्ट सरकार का भी दर्जा दिया जा चुका है और ऐसे में कांग़्रेस के समर्थन से सरकार बनाने की पहल से अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की विचारधारा पर सवालिया निशान लग गया है कि क्या अरविंद केजरीवाल ने मौका परस्ती दिखाकर कांग्रेस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है या फिर वाकई ‘आप’ का यह निर्णय देश हित में की गई एक पहल है?


विपक्ष एवं बुद्धिजीवियों का एक वर्ग, जो अरविंद केजरीवाल के निर्णय पर संदेह कर रहा है, का कहना है कि सरकार बनाने के लिए ‘आप’ का कांग़्रेस से हाथ मिलाना साफ जाहिर करता है कि अरविंद केजरीवाल और ‘आप’ के सारे दावे झूठे थे। कांग्रेस यह जानती थी कि इस बार राजनीति की हवा उससे उलट बह रही है इसलिए मात्र भाजपा के वोट काटने के लिए ही आम आदमी पार्टी का गठन कर उसने एक बड़ा दांव खेला है। शुरुआत से ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मिलीभगत रही है जिसका परिणाम अब जनता को देखना होगा। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर केजरीवाल ने ना सिर्फ जनता के बीच अपनी छवि दूषित की है बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य को भी क्षति पहुंचाई है। शुरुआत से ही जिस पार्टी के कट्टर विरोधी के रूप में ‘आप’ खुद को प्रचारित कर रही है और अंत में सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए उसी पार्टी से हाथ मिला लेती है तो यह अवसरवाद की पराकाष्ठा ही माना जाएगा।


वहीं दूसरी ओर वे लोग, जो यह मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल का यह निर्णय समय की मांग थी, का कहना है कि इस बार देश को एक बदलाव चाहिए और अगर वह बदलाव आम आदमी पार्टी के हाथों लाया जा रहा है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। भाजपा के सरकार बनाने से मना करने के बाद स्पष्ट बहुमत के अभाव में केजरीवाल को कांग्रेस के साथ मिलने का निर्णय करना पड़ा जोकि वक्त की जरूरत थी। ‘आप’ के समर्थकों का कहना है कि दिल्ली के हालात बद् से बद्तर होते जा रहे हैं इसलिए सुधार के तौर पर आम आदमी पार्टी एक परिवर्तन लेकर आएगी और उसकी निष्ठा पर सवाल उठाना पूर्णत: गलत होगा। इस बार दिल्ली की कमान अरविंद केजरीवाल के हाथ में है और वह जनता द्वारा दिए गए इस अवसर का देश हित में ही उपयोग करेगी।


उपरोक्त मुद्दे के दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. अरविंद केजरीवाल का कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना क्या किसी सोची-समझी रणनीति का परिणाम है?

2. दिल्ली के हालातों में परिमार्जन लाने के लिए ‘आप’ का यह निर्णय किस हद तक सही कहा जा सकता है?

3. क्या वाकई अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक अवसरवाद की मिसाल पेश की है?

4. क्या ‘आप’ के इस निर्णय के बाद भी जनता उस पर अपना विश्वास कायम रख पाएगी?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद जनता का विश्वास खो देगी ‘आप’?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “आप और कांग्रेस” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व आप और कांग्रेस – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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