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क्या कहते हैं राहुल गांधी के बदलते तेवर?

जागरण जंक्शन फोरम
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भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के रूप में प्रधानमंत्री पद के लिए अपने प्रत्याशी का चयन कर लिया है। लेकिन देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस की ओर से अभी तक यह तस्वीर स्पष्ट नहीं की गई है कि उनकी ओर से देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर किसे चुना जाना है। हालांकि पार्टी के भीतर राहुल गांधी की लगातार विस्तृत होती छवि और कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि कांग्रेस अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी को ही प्रधानमंत्री पद के लिए नामित करेगी। कुछ समय पहले तक जहां राहुल गांधी राजनीति के छिपे हुए चेहरे थे वहीं अब सक्रिय राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। राहुल गांधी की इस बदलती हुई छवि और प्रधानमंत्री के तौर पर उनके चयन की संभावना को देखते हुए उनके व्यक्तित्व और इतनी बड़ी जिम्मेदारी को संभाल पाने की क्षमता को लेकर एक बड़ी बहस शुरू हो गई है क्योंकि जहां कुछ लोग यह मानते हैं कि राहुल गांधी अभी भी मुखर नेता नहीं बन पाए हैं वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी को देश की जरूरत मानने वाले लोग भी कम नहीं हैं।


पहले वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि राहुल गांधी के भाषण में परिपक्वता नहीं बल्कि उनके ‘ममाज ब्वॉय’ होने की छवि दिखाई देती है। अपने भाषणों में या तो वे अपने परिवार का दुखड़ा सुनाते हैं या फिर अपनी मां और यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी की दुर्दशा का वर्णन करते हैं। जहां उन्हें अपने भविष्य की योजनाओं का वर्णन करना चाहिए वे अपने परिवार के त्याग, बलिदान और उनकी हत्या जैसी बातें करते नजर आते हैं। ऐसा लगता है मानो वह जनता के बीच अपने और अपनी पार्टी के प्रति सहानुभूति पैदा करवा रहे हों। नरेंद्र मोदी के रूप में अपना भावी पीएम देखने वाले लोगों का कहना है कि मोदी शुरू से ही आक्रामक रवैया अपनाते आए हैं जबकि राहुल गांधी हमेशा शांत रहे हैं और अब जिस आक्रामक लहजे में वो बात करते हैं या भाषण देते हैं वह उन पर थोपा हुआ प्रतीत होता है। आज देश को एक सर्वआयामी और कठोर निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री की जरूरत है और राहुल इसके लिए पूरी तरह अयोग्य हैं।


वे लोग जो राहुल गांधी को भविष्य की जरूरत मानते हैं उनका कहना है कि राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर किसी भी प्रकार का संदेह करना उचित नहीं है। गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले राहुल गांधी राजनीति के विभिन्न आयामों से वाकिफ हैं। पहले सांसद बनकर उन्होंने जमीनी राजनीति को समझा और फिर उपाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने संगठन को समझा। जमीनी हालातों से वाकिफ होने और अपने संगठन को समझने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा है इसीलिए उनकी काबीलियत पर शक करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। वैसे भी देश के सबसे पुराने या कहें पहले राजनीतिक परिवार से संबंधित होने की वजह से उनके अनुभव पर शक करना पूर्णतया बेमानी है क्योंकि पृष्ठभूमि अपने आप में अनुभव प्रदान करती है। राहुल के बदलते व्यक्तित्व और उनके अंदाज में आने वाले परिवर्तनों पर इस वर्ग के शामिल लोगों की राय है कि यह राहुल में आ रही परिपक्वता की निशानी है। उनका कहना है कि समय के साथ-साथ राहुल अपनी जिम्मेदारियों को लेकर गंभीर होते जा रहे हैं और उनके इस बदलते व्यवहार से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।


राहुल गांधी जैसे विशिष्ट व्यक्तित्व से जुड़े दोनों पहलुओं पर विचार करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उपस्थित हैं, जैसे:

1. देश की वर्तमान जरूरतों को देखते हुए क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त दावेदार हैं?

2. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के व्यक्तित्व में भारी अंतर हो सकता है लेकिन क्या इस अंतर की वजह से राहुल गांधी की दावेदारी को खारिज किया जा सकता है?

3. राहुल गांधी की पारिवारिक पृष्ठभूमि उन्हें एक सफल राजनेता बनाने में किस हद तक सहायक होगी?

4. राहुल गांधी के बदलते तेवर किस ओर इशारा करते हैं?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:

क्या कहते हैं राहुल गांधी के बदलते तेवर?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “राहुल गांधी” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व राहुल गांधी – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार

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