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औपचारिक तौर पर तेलंगाना के गठन को मंजूरी मिलने के बाद जहां एक तरफ खुशी का माहौल है वहीं आंध्र प्रदेश के भीतर इस विभाजन के विरोध के स्वर भी तेजी से उठने लगे हैं। केंद्रीय पर्यटन मंत्री चिरंजीवी, कांग्रेस सांसद यू. अरुण कुमार, अनंतपुर से सांसद अनंत वी रेड्डी, पल्लम राजू ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी है, वहीं तेलुगू देशम पार्टी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू तेलंगाना के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। इसी क्रम में कई नामी गिरामी नेता और जन प्रतिनिधि अपने इस्तीफे देकर अपने अनुसार हर संभव प्रयत्न कर रहे हैं कि तेलंगाना राज्य का निर्माण ना हो सके, जिसके परिणामस्वरूप तेलंगाना मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष में खड़े लोगों के बीच एक बड़ी बहस शुरू हो गई है।
तेलंगाना जैसे छोटे राज्य के साथ-साथ, अन्य प्रदेशों में भी अलग राज्यों की जो मांग उठ रही है उसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि उनके साथ स्पष्ट भेदभाव किया जाता है। चाहे वह संबंधित राज्यों की वर्तमान विधानसभाओं की कैबिनेट हों, प्रतिनिधित्व का मामला हो या फिर संसाधनों के वितरण का सवाल हो, वरन् प्रशासनिक मामलों में भी सीधे-सीधे दोहरा रवैया अपनाया जाता है, जबकि यदि उनकी अपनी विधानसभा होगी तो वे अपना प्रतिनिधि चुनने के साथ ही अपने क्षेत्र के संसाधनों का पूरा लाभ भी उठा पाएंगे। केन्द्र सरकार द्वारा जारी विकास व राहत के पैकेजों पर सिर्फ उनका हक होगा, जिससे क्षेत्र के समस्याओं का अविलंब निस्तारण किया जा सकेगा तथा राज्य को समृद्ध कर देश के विकास में योगदान दिया जा सकेगा।
जबकि ठीक इसके विपरीत तेलंगाना जैसे छोटे राज्यों के विरोध में शामिल लोग कहते हैं कि निरंतर जारी विभाजन की यह मांग अगर ऐसे ही पूरी की जाती रही तो भारत का हर जिला अपने लिए अलग राज्य की मांग करेगा और जल्द ही भारत में 600 राज्य देखने को मिलेंगे। राजनैतिक-प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से यह पूरी तरह अनुपयुक्त होगा कि तेलंगाना जैसे नए राज्य बनाए जाएं। बड़े राज्य होने का फायदा यह है कि उनकी उत्पादन क्षमता तथा भौगोलिक विभिन्नताओं का बेहतर इस्तेमाल करके उच्चतम निष्पादन किया जा सकेगा। इससे पहले झारखण्ड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ के विभाजनों ने यह साबित कर दिया है कि विभाजन के पश्चात ऐसे छोटे राज्यों में सिर्फ अराजकता का जन्म होता है और जिस विकास के पैमाने पर पृथक राज्य की मांग की जाती है, वह उद्देश्य पीछे छूट जाता है।
तेलंगाना जैसे छोटे राज्य की मांग से जुड़े दोनों महत्वपूर्ण पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं, जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है:
1. तेलंगाना जैसे छोटे राज्यों के गठन की मांग क्या एक नई राजनैतिक समस्या को जन्म देगी?
2. अलग राज्यों की मांग अगर पूरी होती रही तो क्या ये अनवरत श्रृंखला का रूप नहीं ले लेगी?
3. छोटे राज्य राजनैतिक और प्रशासनिक दृष्टि से ज्यादा बेहतर तरीके से काम करने में सक्षम होते हैं। ऐसे में इनका विरोध कहीं सिर्फ राजनैतिक तो नहीं?
4. झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड जैसे राज्यों का उदाहरण सामने होते हुए किस तरह का फैसला लेना चाहिए?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:
छोटा राज्य – तेज विकास या फिर विशुद्ध सियासत
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।
नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “छोटे राज्यों की मांग” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व छोटे राज्यों की मांग – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।
2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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