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क्या सपा के “सुशासन” पर सवालिया निशान बन रहे हैं दंगे?

जागरण जंक्शन फोरम
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27 अगस्त, 2013 को मुजफ्फरनगर के रहने वाले शहनवाज कुरैशी और गौरव नाम के दो युवकों के बीच झगड़े की शुरुआत ने कुछ ही दिनों में दंगों का रूप ले लिया, जिसके परिणामस्वरूप कई बेगुनाहों ने इस झगड़े में अपनी जान गंवा दी।


अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने से लेकर अब तक प्रदेश में कई बार हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क चुके हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के बाद गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 2012 में सांप्रदायिक हिंसा के 104 मामले दर्ज किए गए थे। जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने माना था कि 2012 में उत्तर प्रदेश में 27 दंगे हुए। अखिलेश यादव ने दंगों का सारा दोष उन सांप्रदायिक ताकतों के सिर मढ़ा था जो उनकी सरकार को कमजोर करना चाहती हैं। विपक्षी दल भाजपा भी अखिलेश सरकार को सीधे-सीधे दंगों के लिए जिम्मेदार ठहरा रही है। यही कारण है अब यह मसला एक बहुत बड़ी बहस का मुद्दा बन गया है कि सपा सरकार क्यों ऐसे दंगों को रोकने में नाकामयाब सिद्ध हो रही है?


बुद्धिजीवियों के एक वर्ग का कहना है कि यूं तो पहले भी अखिलेश यादव के पिता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पर मुस्लिम परस्ती के आरोप लगते रहे हैं और अब अपने छोटे से शासनकाल में हुए 27 दंगों को ‘सिर्फ 27 दंगे’ कहकर संबोधित करना इस बात का प्रमाण है कि अखिलेश भी अपने पिता की ही राह पर चल रहे हैं। इस वर्ग में शामिल लोगों ने सपा पर यह भी आरोप लगाया है कि यह सरकार हिन्दू-मुस्लिम दंगों को रोकने की बजाय उन्हें भड़कने देती है जिससे कि एक समुदाय को ताकतवर होने का पूरा-पूरा मौका मिलता है। प्रदेश में शांति व्यवस्था स्थापित करने में पूरी तरह विफल हो चुकी सपा सरकार उसी रणनीति पर चल रही है जिस पर मुलायम सिंह काम किया करते थे। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मुस्लिम वोट ही सपा का सबसे बड़ा वोट-बैंक है और अपने वोट-बैंक को बरकरार रखने के लिए वह कोई भी हथकंडा अपना सकती है फिर चाहे कितने ही मासूमों को अपनी जान से हाथ क्यों ना गंवानी पड़े।


वहीं दूसरी ओर जो पहले पक्ष से बिल्कुल सहमति नहीं रखते, उनका कहना है कि सर्वप्रथम तो ऐसे दंगों को किसी सरकार विशेष के साथ जोड़कर देखना सरासर गलत है। जहां तक अखिलेश यादव का सवाल है तो वह अपनी जिम्मेदारियां जानते हैं और उन्हें पता है कि प्रदेश में शांति व्यवस्था स्थापित रखना उनका कर्तव्य है जिसे वह निभा भी रहे हैं। निजी झगड़ा कब दंगे का रूप ले लेगा इस बात का अंदाजा अखिलेश क्या कोई भी सरकार नहीं लगा सकती। दंगा कोई भी हो उसमें नुकसान दोनों पक्षों का होता है इसीलिए किसी भी रूप में अखिलेश सरकार या सपा पर मुस्लिम परस्ती का आरोप नहीं लगाया जा सकता।


उपरोक्त मसले के दोनों पक्षों पर विचार करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उपस्थित हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है,जैसे:


1. क्या वाकई उत्तर प्रदेश की सपा सरकार राज्य में भड़कने वाले सांप्रदायिक दंगों को शांत करने की बजाय उन्हें बढ़ावा देती है?

2. यह बात जगजाहिर है कि मुलायम सिंह यादव मुस्लिम परस्त राजनेता रहे हैं, तो क्या उनके पुत्र और यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं?

3. कहीं ऐसा तो नहीं कि सपा सरकार को बदनाम करने के लिए यह विपक्ष की सोची-समझी चाल हो?

4. किसी को इस बात का अंदाजा नहीं होता कि कब कौन सा झगड़ा दंगे का रूप ले लेगा, ऐसे में सपा सरकार पर निशाना साधना कहां तक सही है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


क्या सपा के सुशासन पर सवालिया निशान बन रहे हैं दंगे?



आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “सांप्रदायिक दंगे” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व सांप्रदायिक दंगे – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।



2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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