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क्या वाकई पुरुष के बिना अधूरी है नारी?

जागरण जंक्शन फोरम
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छोटी सी उम्र में विधवा हुई चित्रलेखा ने परिपक्वता के पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी अपने जीवन में हमेशा पुरुष के सहारे को महत्व दिया। वह सुंदर थी, आत्मविश्वासी थी और हर परिस्थिति से जूझने की उसमें असीम शक्ति थी। समाज की तमाम भर्त्सनाओं को सहन करने के बाद भी उसने अपने मार्ग से विरक्त होने की कभी कोशिश नहीं की, वह नर्तकी और प्रेमिका बनकर खुश थी। उसके लिए जीवन की सजीवता का अर्थ हलचलों और उठा-पटक से था, जिनसे वह कभी नहीं घबराई लेकिन हारी तो सिर्फ पुरुष के प्रेम में पड़कर। ना जाने क्यों उसने हर मोड़ पर प्रेम और पुरुष के सहारे की जरूरत महसूस की। यह कहानी है प्रख्यात लेखक भगवतीचरण वर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्रलेखा’ की मुख्य पात्रा चित्रलेखा की।



यह उपन्यास काफी पुराना है लेकिन बहुत हद तक आज के हालातों को वर्णित करता है। हमारे समाज में महिला के साथ पुरुष का होना अत्याधिक आवश्यक माना जाता रहा है। अकेले जीवन जीने की लालसा महिलाओं को निंदा का पात्र बनाती है। यह तो हुई समाज की बात लेकिन देखा यह जाता है कि महिलाएं भी खुद को बिना पुरुष के सहारे संबल नहीं पातीं। वह पुरुष के अधीन रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करना चाहती हैं। महिलाओं की आत्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा यह पक्ष थोड़ा निराश करने वाला तो है ही साथ ही हमेशा से ही एक बहस का मुद्दा रहा है कि अपनी स्वतंत्रता की मांग करने वाली महिलाएं क्या वाकई अपनी स्वतंत्रता के लिए गंभीर हैं या फिर मात्र एक छद्म स्वतंत्रता का ही आवरण ओढ़े रहना चाहती हैं?


स्त्री हित की पैरोकारी करने वाले लोगों का मानना है कि महिला और पुरुष प्रकृति की दो अनमोल रचनाएं और एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए फिर भी पूरी तरह अलग अस्तित्व के स्वामी हैं। ऐसे में महिलाओं को हर मोड़ पर पुरुष की गुलामी या उसके साथ की कोई आवश्यकता नहीं होती। अगर कोई कहता है कि महिलाएं अकेली अपने दम पर कुछ नहीं कर सकतीं या अपने जीवन को आत्मविश्वास के साथ जी नहीं सकतीं तो उसे वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालनी चाहिए जहां ऐसी कितनी ही महिलाओं के नाम हमारे सामने हैं जो अकेली, स्वतंत्र और सफल जीवन जी रही हैं। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि महिलाओं का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है जिस पर कोई भी पहरा नहीं लगा सकता।


वहीं दूसरे वर्ग में शामिल लोगों का मानना है कि वैयक्तिक तौर पर महिलाएं वह चाहे कितनी ही सशक्त क्यों ना हों लेकिन अगर उसका हाथ थामने के लिए कोई पुरुष ना हो तो वह खुद को कमजोर ही पाती हैं। कुछेक महिलाओं के उदाहरण को सभी पर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता। प्राकृतिक तौर पर महिलाएं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं और ऐसे में उन्हें पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ती ही पड़ती है। प्यार और अपनापन दिखाकर पुरुष उन्हें अपने पास खींचता है और हैरानी की बात तो ये है कि वो खिंचती भी चली जाती हैं। रोने के लिए, हंसने के लिए, आगे बढ़ने के लिए यहां तक कि गिरने के लिए भी उन्हें पुरुष की जरूरत पड़ती है। यह एक कड़वा सच है कि हमारा समाज अकेली महिला को सम्मान नहीं देता उतना ही सच यह भी है कि महिलाएं भी पुरुष के साथ के बिना अपना जीवन संपूर्ण नहीं पातीं।


उपरोक्त विषय के दोनों पक्षों पर गौर करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने प्रस्तुत हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना अत्यंत आवश्यक हैं, जैसे:

1. हर कदम पर महिला को पुरुष के सहारे की जरूरत क्यों पड़ती है?

2. क्या वाकई बिना किसी पुरुष के सहारे के महिलाओं का सफल जीवन व्यतीत करना व्यवहारिक है?

3. जिस तरह महिलाओं को पुरुष के साथ की जरूरत होती है क्या उसी तरह पुरुष भी महिलाओं के साथ के बिना अधूरे हैं?

4. प्रकृति ने महिला-पुरुष को एक-दूसरे के पूरक के रूप में बनाया है, ऐसे में अगर दोनों साथ रहना चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


क्या वाकई पुरुष के बिना अधूरी है नारी?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “नारी का अस्तित्व” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व नारी का अस्तित्व – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार



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