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भयावह कुपोषण के मद्देनजर कैसे सच होगा विकसित भारत का सपना?

जागरण जंक्शन फोरम
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कनाडा के एक गैर सरकारी संगठन द्वारा विश्वभर में करवाए गए एक सर्वे के नतीजों के अनुसार वैश्विक स्तर पर मौजूद कुपोषित लोगों की संख्या में से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है. हाल ही में हुआ यह सर्वे हमारी सरकारी नीतियों और नागरिकों को मुहैया करवाई जाने वाली सुविधा इंतजामों की पोल खोलता प्रतीत होता है क्योंकि इस अध्ययन के द्वारा यह स्पष्ट तौर पर कहा जा रहा है कि उभरती अर्थव्यवस्था के बावजूद भारत के हालात अति पिछड़े देश जैसे ब्राजील, नेपाल, बांग्लादेश से कुछ ज्यादा अलग नहीं हैं. कनाडा के गैर-सरकारी संगठन माइक्रोन्यूट्रीएंट इनिशिएटिव के अध्यक्ष एमजी वेंकटेश मन्नार का कहना है कि कम ऊंचाई के होने, शरीर में खून की कमी के होने और कम वजन जैसे आंकड़े सबसे ज्यादा भारत में ही हैं. मन्नार के अनुसार भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय सहयोगी मंत्रालयों जैसे महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा और ग्रामीण विकास मंत्रालय आदि में बंटा हुआ है लेकिन विडंबना यही है कि समस्या को कोई भी मंत्रालय गंभीरता से नहीं लेता और ना ही कोई इस बाबत जवाबदेही के लिए ही तैयार होता है.


इस सर्वे के नतीजे एक तरफ तो भारत के हालिया स्थिति को वर्णित कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर इन परिणामों ने एक बहुत बड़ी बहस को भी जन्म दिया है. जहां कुछ लोग ऐसे शर्मनाक आंकड़ों के लिए सरकारों और राजनीतिक दावों को आड़े हाथों ले रहे हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके अनुसार राजनीतिक नीतियों के कारण ही यह नतीजा भारत के हालातों का परिमार्जित रूप है.


बुद्धिजीवियों का एक वर्ग, जो देश की जनता के ऐसे हालातों के लिए स्वार्थी राजनीति को ही दोषी ठहरा रहा है, का कहना है कि वैश्विक स्तर पर तुलना करने के बाद अगर भारत को ऐसे शर्मनाक आंकड़ों का मुंह देखना पड़ रहा है तो इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हमारी असफल नीतियां ही हैं. ऐसी नीतियां जिन्हें दिखावे के लिए बना तो लिया जाता है लेकिन लागू करने के लिए कोई कोशिश नहीं की जाती. भले ही भारत को एक कल्याणकारी राज्य का दर्जा दिया जाता हो लेकिन वोटबैंक की राजनीति के तहत काम कर रही हमारी सरकारें सुविधाएं भी वहीं मुहैया करवाती हैं जहां उन्हें अपना फायदा नजर आता है. एक तरफ लोग भूखों मरने के लिए मजबूर हैं तो दूसरी ओर सरकारें सिर्फ वायदों के भरोसे ही अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रही हैं, ऐसे वायदे जिनके पूरे होने की उम्मीद करना खुद को धोखा देने जैसा है.


वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवियों के दूसरे वर्ग में शामिल लोगों का यह साफ कहना है कि यह सरकारी नीतियों का ही परिणाम है जो स्वतंत्रता से लेकर अब तक भारत के हालातों में उल्लेखनीय परिमार्जन देखे जा सकते हैं. पहले की तुलना में अब हम अनाज उगाने में सक्षम हुए हैं और अनेक सुविधाएं भी नागरिकों को उपलब्ध करवाई जा रही हैं. मेडिकल सुविधाएं और खाद्य पदार्थों के वितरण जैसी नीतियां भी भारत के हालातों को सुधारने की कोशिश कर रही हैं. आजादी के बाद से ही भारत के सामने कई चुनौतियां घड़ी हैं जिन पर धीरे-धीरे काबू पाया जा रहा है. इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि इन चुनौतियों से निपटने में कुछ हद तक हम सफल हुए हैं लेकिन एक लंबी रेस अभी बाकी है, जिसमें निश्चित ही हमें सफलता हासिल होगी.


भारत के कुपोषण के आंकड़ों से जुड़े इस सर्वे और भारत के वर्तमान हालातों का विश्लेषण करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उपस्थित हैं, जैसे:

1. भारत में कुपोषण के ऐसे शर्मनाक आंकड़ों के लिए हमारी सरकारी नीतियां किस हद तक जिम्मेदार हैं?

2. पिछड़े देशों के साथ भारत की तुलना क्या हमारी उभरती हुई अर्थव्यवस्था की पोल खोलने जैसा है?

3. आजादी के बाद से लेकर वर्तमान हालातों पर नजर डालें तो हम खुद को कहां खड़ा पाते हैं?

4. क्या भारतीय सरकारें अपना दायित्व सही से निभा पाने में सक्षम हैं?

जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:

भयावह कुपोषण के मद्देनजर कैसे सच होगा विकसित भारत का सपना?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “भारत में कुपोषण” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व भारत में कुपोषण – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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