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क्या सरबजीत को शहीद कहना शहादत की अवधारणा के साथ खिलवाड़ है?

जागरण जंक्शन फोरम
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पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में कैद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह पर उसी जेल में बंद पाकिस्तानी कैदियों द्वारा घातक हमला करने के कारण आखिरकार उनकी सांसों की डोर टूट गई। सरबजीत की बहन ने भारत और सरहद पार जाकर तमाम कोशिशें की कि वह किसी तरह अपने भाई पर लगे आरोपों को झूठा साबित कर उसे वापस घर ले आ पाएं लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी भारत लाने की तमाम कोशिशें सरबजीत के शव के भारत आने पर पूरी हुईं। सरबजीत सिंह के शव के भारत आते ही पंजाब सरकार ने उन्हें शहीद का दर्जा देने के साथ उनके परिवार को एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान करने की घोषणा और उनकी दोनों बेटियों को सरकारी नौकरी देने का वायदा किया। भारत के प्रधानमंत्री ने उन्हें ‘भारत का बहादुर लाल’ घोषित किया और उनके शव को भारत लाने के लिए एक विशेष विमान पाकिस्तान भेजा। सरबजीत के शव को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई भी दी गई। लेकिन एक सवाल जो आज एक बहुत बड़ी बहस की वजह बना हुआ है वो यह कि क्या वाकई सरबजीत सिंह को शहीद का दर्जा दिया जाना सही है?


बुद्धिजीवियों का एक वर्ग ऐसा है जो सरबजीत को शहीद का खिताब दिए जाने से खफा है। उनका कहना है कि सरबजीत सिंह के विषय में अभी तक पूरी सच्चाई बाहर नहीं आ पाई है। लगातार यह कहा जाता रहा है कि सरबजीत सिंह साधारण किसान थे जो गलती से भारत की सीमा लांघकर पाकिस्तान पहुंचे और वहां उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया। वहीं पाकिस्तानी अखबारों के अनुसार यह खबर आई कि सरबजीत सिंह ने यह कबूल किया कि वह शराब का एक मामूली तस्कर था। वहीं पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा यह कहा गया कि सरबजीत सिंह भारतीय जासूस था और उसी ने वर्ष 1990 में पाकिस्तान में बम धमाके किए जिसके आरोप में उसे मौत की सजा सुनाई गई। लेकिन यह भी सच है कि भारत की ओर से कभी भी उन्हें अपना जासूस स्वीकार नहीं किया गया और अगर उन पर लगे बम धमाके के आरोप सही थे तो बहुत हद तक संभव है कि वह एक चरमपंथी व्यक्ति थे। यह सब जानने और समझने के बाद भी अगर भारत सरकार उन्हें बहादुर लाल कहती है और राज्य सरकार उन्हें शहीद के दर्जे से नवाजती है तो शहादत के पैमाने, उसकी अवधारणा के साथ खिलवाड़ है। इस वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि शहीद का दर्जा उसे दिया जाता है जो किसी तरह देश के काम आया हो या देश की सेवा करते हुए उसके प्राण गए हों। सरबजीत सिंह तो पाकिस्तान की जेल में बंद एक आम भारतीय थे और उन्होंने शहादत तक का यह सफर किस तरह पूरा किया यह बात समझ से परे है। आज सरबजीत सिंह को शहीद घोषित किया गया है कल यह आवाज कहीं और से भी उठ सकती है, इसीलिए यह कहना गलत नहीं है कि इस निर्णय ने शहादत की अवधारणा को ही हिला कर रख दिया है।


वहीं बुद्धिजीवियों के दूसरे वर्ग में शामिल लोगों का कहना है कि सरबजीत सिंह के मसले ने भारत की जनता को एक मुद्दे पर लामबंद किया और उनमें राष्ट्रवाद की एक लहर पैदा की। हालांकि सरबजीत सिंह कोई पहले ऐसे नागरिक नहीं थे जिन्हें पाकिस्तानी जेल में कैद कर यातनाएं दी गईं लेकिन यह मसला अपने आप में पहला था जिसने पूरे देश को एक साथ कर पड़ोसी देश के अत्याचारों से रूबरू करवाया। सरबजीत सिंह को दिए गए शहीद के टाइटल को सही ठहराने वाले लोगों का कहना है कि सरबजीत की गिरफ्तारी के बाद आम और खास का अंतर छोड़ सभी लोगों ने उसे रिहा करवाए जाने की अपने-अपने तरीके से कोशिशें की और देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब इतने बड़े पैमाने पर सरबजीत सिंह को रिहा करने की मांग उठाई गई। सरबजीत मसले के कारण आज यह भी मांग उठ रही है कि भूल से सीमा पार कर गए लोगों के लिए दोनों पक्षों को नीति तय करनी चाहिए तथा पाकिस्तानी जेलों में बंद भारतीयों की रिहाई के प्रयास तेज होने चाहिए। अगर ऐसे में किसी व्यक्ति को शहीद का खिताब दिया जाता है तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।


शहादत की अवधारणा और सरबजीत सिंह को दिए गए शहीद के टाइटल के पक्ष और विपक्ष पर चल रही बहस को समझने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उठते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या सरबजीत सिंह को शहीद का दर्जा दिया जाना सही है?

2. सरबजीत सिंह की मौत ने देश को एक बहुत बड़े मसले के प्रति लामबंद किया है, क्या यह आधार काफी नहीं है उन्हें ‘शहीद’ कहने का?

3. यूं तो भारत ने कभी भी सरबजीत सिंह को अपना जासूस स्वीकार नहीं किया लेकिन अब उन्हें शहीद का दर्जा देकर सरकार क्या साबित करना चाहती है?

4. क्या सरबजीत को शहीद घोषित कर हमने शहादत की अवधारणा के साथ खिलवाड़ किया है?

5. सरबजीत का मामला पाकिस्तान की जेल में बंद अन्य भारतीय कैदियों से किस तरह अलग है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


क्या सरबजीत को शहीद कहना शहादत की अवधारणा के साथ खिलवाड़ है?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “देश के लिए शहादत” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व देश के लिए शहादत – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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