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क्या स्त्री अधिकारों की मांग नारियों को “अबला” साबित करती है?

जागरण जंक्शन फोरम
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आजकल टेलीविजन पर एक विज्ञापन बहुत लोकप्रिय हो रहा है। इस चर्चित विज्ञापन का कहना है कि पुरुषों की मर्दानगी किसी महिला को छेड़ने में नहीं बल्कि उसकी रक्षा करने में है। खुद को आधुनिक और समानता का पक्षधर कहलवाने वाली आज की युवा पीढ़ी भी इस विज्ञापन को बहुत पसंद कर रही है वहीं दूसरी तरफ एक पक्ष ऐसा भी है जो इसे वर्षों से चली आ रही पुरुषवादी मानसिकता का नवीनतम चेहरा बता रहा है।


यह मात्र एक उदाहरण भर है असल मुद्दा एक बार फिर महिलाओं को समान अधिकार दिलवाने जैसे विवादास्पद मसले पर केन्द्रित है। वे लोग जो नारी के अधिकारों और उसकी स्वतंत्रता की मांग करते हैं वह भी अब आरोपों और विवादों को घेरे में आ गए हैं। टेलीविजन पर चर्चित इस विज्ञापन ने वर्षों पुरानी बहस को नया रूप देकर फिर से हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया है।


वे लोग जो समाज से महिलाओं के सम्मान और उन्हें समान अधिकार देने की मांग करते हैं उनके विरोध में एक पक्ष खड़ा है जिसका कहना है कि महिला एक स्वतंत्र अस्तित्व है और उसे अपने अधिकारों, स्वतंत्रता और समानता या फिर अपनी सुरक्षा के लिए किसी प्रकार की मांग करने का कोई औचित्य ही नहीं है। इस पक्ष में शामिल लोगों का कहना है कि एक तरफ तो हम खुद यह बात स्वीकारते हैं कि महिला और पुरुष इस समाज के समान रूप से जरूरी अंग हैं। लेकिन जब हम महिलाओं के अधिकारों के लिए पुरुषों के आगे हाथ फैलाते हैं या फिर आंदोलन करते हैं तो बात साफ तौर से प्रमाणित होती है कि जिस हिस्से को हम समान कहते नहीं थकते उसे ही दोयम दर्जा प्रदान कर देते हैं। वे लोग जो नारियों के अधिकारों की मांग करते हैं वे खुद यह मानते और समझते हैं कि महिलाएं शोषित, दमित और लाचार हैं। विरोधी पक्ष नारीवादियों और पुरुष वर्ग पर यह आरोप लगा रहा है कि वे पुरुष जो यह कहते हैं कि वह महिलाओं को पूरी आजादी और अपनी मनमर्जी से जीने का हक देते हैं वह खुद को कर्ता भाव में रखकर महिलाओं को आश्रित की भूमिका में रखते हैं। जबकि सच यह है महिला-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं कम या ज्यादा नहीं। अगर एक स्वतंत्रता देता है तो दूसरा अपने आप ही अधीन की भूमिका में आ जाएगा।


वहीं दूसरी ओर वे लोग भी हैं जो उपरोक्त सभी कथनों और तर्कों को गलत ठहराकर यह कहते हैं कि वह स्वयं सदियों पुरानी चली आ रही खोखली मानसिकता को समाप्त करने की कोशिश में लगे हुए हैं जिसके अंतर्गत पुरुष ताकतवर और महिला को अबला का स्थान दिया गया है। अगर वह महिलाओं को सुरक्षा और अधिकार देने की बात करते हैं तो इसके पीछे उनका उद्देश्य महिलाओं को कमतर आंकना नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही दमन और शोषण की स्थिति से मुक्ति पाने की कोशिश है।


उपरोक्त मसले और उससे संबंधित दोनों पक्षों पर विचार करने के बाद निम्नलिखित कुछ प्रश्न हमारे सामने प्रस्तुत हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या महिलाओं के लिए अधिकारों और स्वतंत्रता की मांग करना वाकई उन्हें पुरुषों के अधीन घोषित करता है?

2. पुरुषों का यह पक्ष कि वे महिलाओं के अधिकारों की मांग इसलिए करते हैं क्योंकि वह उन्हें दमित वातावरण से मुक्ति दिलवाना चाहते हैं, कहां तक सही है?

3. बहुत से लोगों का कहना है कि महिलाएं समानता नहीं सम्मान की चाह रखती हैं, यह तर्क कितना जायज है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


क्या स्त्री अधिकारों की मांग नारियों को अबला साबित करती है?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।

नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “महिलाओं के अधिकार”  है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व महिलाओं के अधिकार – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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