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संसद तक पहुंचाने में कितनी सफल होगी अरविंद केजरीवाल की रणनीति?

जागरण जंक्शन फोरम
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कुछ समय पहले अन्ना नाम की एक आंधी चली थी जिसने भले ही कुछ समय के लिए ही सही लेकिन सरकार की नींद उड़ा दी थी। जनलोकपाल लाने के उद्देश्य से अन्ना हजारे के नेतृत्व में एक टीम अन्ना का गठन किया गया। परंतु दुर्भाग्यवश अन्ना टीम जनलोकपाल बिल को तो पास नहीं करवा पाई लेकिन टीम के अंदरूनी मतभेदों को बढ़ता देख अन्ना हजारे को अपनी टीम को भंग करना पड़ा। लेकिन समाज के लिए नासूर बन चुके भ्रष्टाचार को समाप्त करने का जो कार्य अन्ना टीम नहीं कर पाई उसे पूरा करने का बीड़ा अन्ना टीम के मुख्य चेहरे रहे समाज सेवक और मैगसेसे अवॉर्ड विनर अरविंद केजरीवाल ने उठाया है।


अन्ना टीम के विखंडन के पश्चात इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संस्था के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने अपने दम पर राज्य और केन्द्रीय स्तर पर फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं और वह यह बात पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका मकसद संसद पहुंचकर सत्ता पाना नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन कर भ्रष्टाचार से मुक्त समाज की स्थापना करना है।


अपने आंदोलन की शुरुआत में अरविंद केजरीवाल सत्ताधारी दल को निशाना बनाकर नए-नए घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर कर रहे थे। ऐसा माना जा रहा था कि अरविंद विपक्षी दलों के साथ मिलकर आगामी लोकसभा चुनावों के चेहरे को बदल कर रख देंगे। लेकिन अब जब उन्होंने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भी आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं तो संसद तक पहुंचने की उनकी रणनीति के सफल होने पर संदेह उठने लगे हैं।


निःसंदेह अरविंद केजरीवाल का स्वघोषित उद्देश्य काबिल-ए-तारीफ है लेकिन जिस रणनीति पर चलकर वह अपने उद्देश्य को पाने की कोशिश कर रहे हैं वह कितनी सफल होगी इस बात पर बहस शुरू हो गई है।


एक ओर जहां अरविंद केजरीवाल यह चाहते हैं कि वह अपने खुलासों से जनता को जागरुक करें ताकि आगामी चुनावों में वह अपने वोट का सही प्रयोग कर उन्हें संसद तक पहुंचाए। जनता की मानसिकता और उनके विचारों पर पूरी तरह से भरोसा करने के बाद अरविंद केजरीवाल सत्ताधारी पार्टी के साथ-साथ विपक्षी दलों को भी अपने आरोपों के दायरे में लेने लगे हैं। वह किसी पार्टी विशेष के नहीं बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भ्रष्ट नेताओं की पोल खोलकर उनकी सच्चाई जनता के सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। आदर्शवाद की राजनीति के सहारे अरविंद केजरीवाल एक वास्तविक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना चाहते हैं। उन्हें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि जिस नेता पर वह आरोप लगा रहे हैं वह किस पार्टी का सदस्य है। उनके अनुसार अगर जनता के सामने सच्चाई पेश की जाए तो वह सोच-समझकर ही अपना वोट डालेगी।


वहीं दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल की रणनीति की सफलता पर संदेह करने वाले लोगों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल जिस आदर्शवाद को प्रधानता देकर जनता की सोच को महत्व दे रहे हैं वह उनके सभी प्रयासों को असफल कर देगा। ऐसे लोगों का मानना है कि अरविंद शायद यह भूल गए हैं कि भारत की जनता चंद रुपयों और जरा से लालच के लिए अपना वोट बेच देती है। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जब प्रत्याशी पर लगे गंभीर आरोपों के बाद भी जनता उसे वोट देकर कुर्सी पर बैठा देती है। इसे उसकी विवशता कहें या फिर आदत लेकिन धनबल और बाहुबल के कारण जनता अपना वोट बेचने में देर नहीं करती। यह सब जानने के बाद भी अगर अरविंद जनता के विचारों को प्रमुखता देकर सत्ताधारी पार्टी के अलावा अन्य विपक्षी दलों से भी लोहा ले रहे हैं तो यह उनकी सबसे बड़ी नासमझी है।


अगर वह यूपीए गठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं तो उन्हें चाहिए कि कम से कम विपक्षी दलों को तो अपने साथ रखें ताकि अगले लोकसभा चुनावों में उन्हें राजनीतिक समर्थन की कमी ना खले क्योंकि भारत का राजनैतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि एक सच्चे इंसान के लिए जनता तालियां तो बजा सकती है लेकिन जब बैलेट बॉक्स में वोट डालने की बात आती है तो जनता की आंखें ग्लैमर और पैसे की वजह से चौंधिया जाती है। अगर केजरीवाल सभी राजनीतिक पार्टियों को अपना दुश्मन बना लेंगे तो उनका संसद तक पहुंचने का सपना कभी सच नहीं हो पाएगा क्योंकि अकेला चना कभी भांड नहीं फोड़ सकता।


अरविंद केजरीवाल जिस रणनीति पर कार्य कर रहे हैं उसके दोनों पक्षों पर विचार करने के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने आते हैं, जैसे:


1. अरविंद केजरीवाल की रणनीति की सफलता पर संदेह रखने वाले और जनता की क्षमता को कम आंकने वाले लोगों का पक्ष कितना व्यवहारिक है?

2. क्या वाकई जनता इतनी अपरिपक्व है कि वह इन सब खुलासों के बाद भी धनबल और बाहुबल के दबाव में आकर अपने वोट का सही प्रयोग नहीं कर पाएगी?

3. सत्ताधारी दल के अलावा विपक्षी दलों से भी लोहा लेकर क्या अरविंद खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?

4. क्या अरविंद केजरीवाल को अपनी रणनीति पर एक बार दोबारा विचार करने की जरूरत है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


संसद तक पहुंचाने में कितनी सफल होगी अरविंद केजरीवाल की रणनीति?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट:1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “अरविंद की रणनीति”  है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व अरविंद की रणनीति – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum  नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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