Menu
blogid : 4920 postid : 604

महात्मा गांधी – पूंजीवाद के अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि या सर्वहारा के संरक्षक?

जागरण जंक्शन फोरम
जागरण जंक्शन फोरम
  • 157 Posts
  • 2979 Comments

महात्मा गांधी जयंती विशेष

आज जबकि भारत राजनैतिक और सामाजिक तौर पर एक संक्रमण काल से गुजर रहा है और सरकारों की अक्षमता आर्थिक और प्रशासनिक रूप से देश को चोट पहुंचा रही है तो ऐसे में महात्मा गांधी के सिद्धांतों, जीवनमूल्यों की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही है। बहुत से विद्वानों का मानना है कि गांधी जी किसी भी समाज और देश के लिए हमेशा ही प्रासंगिक बने रहेंगे किन्तु कई ऐसे लोग भी हैं जो उन पर पूंजीपतियों और पूंजीवादी व्यवस्था का संरक्षक होने का आरोप लगाते हैं। इसी को देखते हुए गांधी जयंती के अवसर पर इस मुद्दे को आपके सामने फोरम के रूप में पेश किया गया है।


महात्मा गांधी की नीतियों के विरोधियों का मानना है कि गांधी जी अपने क्रियाकलापों में पूर्णत: पूंजीवाद व्यवस्था के हित संरक्षक के रूप में उभर कर आए जैसे कि उनका बिरला भवन में ठहरना, अच्छी गाड़ियों से यात्रा करना, अपनी नीतियों में पूंजीवादियों की राय को शामिल करना, राष्ट्रीय आजादी आंदोलन के दौर में श्रमशील वर्ग को संयम तथा शांति का उपदेश देना ताकि वह पूंजीवादी व्यवस्था की वृद्धि में सहयोग कर सकें आदि। इसके अलावा गांधीजी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत पूरी तरह से श्रमशील वर्ग के खिलाफ होकर पूंजीवादी व्यवस्था के हित में था।


इसके ठीक विपरीत गांधी जी के समर्थक उपरोक्त विचारों को अस्वीकृत करते हैं और उन्हें सर्वहारा के स्पष्ट संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनका मानना है कि आजादी के आंदोलन के दौरान देश में पूंजीवादियों और सर्वहारा दोनों ही वर्गों के बीच सामंजस्य कायम करने के लिए गांधी को पूंजीपतियों का सहयोग लेना आवश्यक था। लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि वे पूंजीवाद के समर्थक थे बल्कि इसके ठीक विपरीत वह पूंजीपतियों को विवश कर रहे थे कि वह सर्वहारा के हितार्थ अपनी नीतियां संचालित करें। साथ ही गांधी जी ने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के द्वारा सर्वहारा वर्ग को मालिकाना हक दिलाने की कवायद की।


गांधी जी के मूल्यों और विचारधारा के विषय में उपरोक्त बहस के बाद निम्नलिखित प्रश्न हमारे सामने उठते हैं, जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


  1. क्या आप मानते हैं कि महात्मा गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत श्रमिकों के खिलाफ था?
  2. महात्मा गांधी का पूंजीपतियों के साथ दिखना क्या उन्हें पूंजीवाद का सर्मथक सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है?
  3. वर्तमान संदर्भ में गांधी जी अपने विचारों, मूल्यों और कार्यपद्धति में कितने प्रासंगिक रह गए हैं?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


महात्मा गांधी – पूंजीवाद के अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि या सर्वहारा के संरक्षक?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हैं तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “वर्तमान संदर्भ में गांधी जी” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व वर्तमान संदर्भ में गांधी जी – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum  नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh