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महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत: दोषी कौन अतिमहत्वाकांक्षा या पुरुष प्रधान रवैया?

जागरण जंक्शन फोरम
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प्यार, महत्वाकाक्षाएं और फिर मौत…….यह है आज के समाज की कड़वी हकीकत. हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन उर्फ चांद से अपने संबंधों को लेकर चर्चा में रहने वाली अनुराधा उर्फ फिजा की संदेहास्पद तरीके से मौत का मामला हो या दिल्ली की एक एयर होस्टेस की आत्महत्या करने जैसी घटना, दोनों ही मसलों ने हमारे समाज के सामने रोंगटे खड़ी कर देने वाली सच्चाई पेश की है. एक ऐसा सच जिसे समझने के बाद हम यह सोचने के लिए विवश हो जाते हैं कि क्या खुद को आधुनिक और उदार कहलवाने वाले भारतीय समाज में आज भी महिलाएं केवल उपभोग की ही वस्तु हैं? हम महत्वाकांक्षाओं को उनके ऐसे हालातों का जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन क्या महिलाओं का महत्वाकांक्षी होना गलत है?


महिलाओं द्वारा अपने ही जीवन का अंत करना या उनकी संदेहास्पद मौत एक दुखद घटना है लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जो ऐसे हालातों के लिए स्वयं महिला को ही दोषी ठहराते हैं. ऐसे लोगों का मत है कि अति महत्वकांक्षाओं और अपने हित साधने के चक्कर में महिलाएं सही-गलत जैसी बातों को नजरअंदाज कर देती हैं. अपनी असीम इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह सारी हदें पार कर जाती हैं. अपने भविष्य को सुधारने के लिए महिला यह कदम उठाती है लेकिन धीरे-धीरे वही कदम उसके लिए एक अभिशाप बनने लगता है. नाम और शोहरत पाने की लालसा में महिलाओं को लगता है कि वह अपने फायदे के लिए पुरुष का इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन जब उपभोग करने के बाद महिला को दूध में से मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया जाता है तब उसके पास अपने जीवन को समाप्त करने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचता. इस तरह के मामलों में महिलाओं को पीड़िता ना मानने वाले लोगों का कहना है कि आत्महत्या करने वाली या संदेहास्पद मृत्यु की शिकार हर महिला को पीड़िता की नजर से देखना और पुरुष को दोषी ठहराना नासमझी होगी.


वहीं दूसरी ओर महिलाओं हितों के साथ पूर्ण सहमति रखने वाले लोगों का कहना है कि कोई व्यक्ति अपनी खुशी से अपने ही जीवन का अंत नहीं करता. अगर कोई महिला ऐसा कदम उठाने के लिए विवश होती है तो हमें उसकी मनोदशा पर विचार करना चाहिए. महत्वाकांक्षा रखना या किसी से प्रेम करना किसी भी रूप में गलत नहीं है, बल्कि यह तो मनुष्य का अधिकार है कि वह अपने जीवन को सफल बनाने के लिए प्रयासरत रहे. लेकिन पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं को केवल उपभोग की वस्तु की समझा जाता है. यही वजह है कि उसे झूठे सपने दिखाकर, उसका मनचाहा शोषण करने के बाद उसे तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता है. हालातों का सामना ना कर पाने के कारण महिला अवसाद ग्रस्त हो जाती है और समाज के ताने उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर देते हैं. महिलाओं को पीड़िता की नजर से देखने वाले लोगों का मत है कि महिला के आत्महत्या करने या उनकी संदेहास्पद ढंग से मृत्यु के बाद अगर उन्हीं को ही अपराधी ठहरा दिया जाता है तो इससे विकृत पुरुष मानसिकता को और अधिक बल मिलेगा और आगे ना जाने कितनी ही भोली-भाली, मासूम महिलाएं शातिर पुरुषों की शिकार बनती रहेंगी.


उपरोक्त चर्चा और वर्तमान परिदृश्य पर विचार करने के बाद हमारे सामने निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है, जैसे:


1. क्या भविष्य को सुधारने के लिए महिलाओं का महत्वाकांक्षी होना उनके चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाता है?

2. क्या किसी महिला का पुरुष से प्रेम करना या उस पर विश्वास करना गलत है?

3. स्त्रियों के साथ होने वाली ज्यादतियों के लिए पुरुषों को ही अपराधी समझा जाता है लेकिन वर्तमान हालातों के अनुसार क्या हमें अपनी इस धारणा में बदलाव नहीं लाना चाहिए?

4. अगर प्रेम और विश्वास का नतीजा मौत है तो इसके लिए हमें किसे दोषी कहना चाहिए?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत: दोषी कौन अतिमहत्वाकांक्षा या पुरुष प्रधान रवैया?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत – Jagran Junction Forum लिख कर जारी कर सकते हैं।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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