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यौन संबंधों की आयु सीमा में वृद्धि – एकतरफा प्रस्ताव या सामाजिक जरूरत

जागरण जंक्शन फोरम
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दिल्ली की एक अदालत के न्यायाधीश का मानना है कि सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित करने की उम्र को बढ़ा कर अठ्ठारह वर्ष करने जैसा प्रस्ताव अलोकतांत्रिक है। इतना ही नहीं संबंधित जज का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार का यह प्रस्ताव भारतीय समाज में व्याप्त पिछड़ेपन को साफ दर्शाता है। इससे पहले भी दिल्ली की एक अदालत ने सेक्स करने की उम्र अठ्ठारह वर्ष बढ़ाए जाने पर चिंता व्यक्त की थी।


हालांकि यह न्यायाधीश महोदय का अपना निजी मत है लेकिन हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंधों की उम्र को बढ़ाए जाने के सख्त खिलाफ हैं। उनका मानना है कि पहले की अपेक्षा युवाओं का मानसिक और शारीरिक विकास कम उम्र में हो जाता है। ऐसे में यह कतई जरूरी नहीं है कि 18 वर्ष से कम उम्र की युवती के साथ जबरन संबंध स्थापित किया गया हो। सेक्स के प्रति रुझान और सहमति के कारण अगर युवती किसी प्रकार की पहल करती है तो इसे बलात्कार की श्रेणी में रखना पूर्णत: गलत है। इस प्रस्ताव का सीधा और एकमात्र नुकसान केवल युवकों को ही होगा। भले ही वह इसमें पूरी तरह दोषी हों या ना हों उन्हें बलात्कार का दोषी ठहराकर प्रताड़ित किया जाएगा। यह दौर समानता का है इसीलिए एक ऐसे प्रस्ताव को पारित करना, जो पूरी तरह एक पक्ष पर ही केंद्रित है, नासमझी होगी।


वहीं दूसरी ओर वे लोग हैं जो महिलाओं के हितों की रक्षा और उनके सम्मान को बरकरार रखने के लिए इस प्रस्ताव को बहुत जरूरी मानते हैं। सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंधों की उम्र अट्ठारह वर्ष करने जैसे प्रस्ताव का पक्ष लेते हुए इनका कहना है कि भारतीय समाज में हमेशा से पुरुषों द्वारा महिलाओं का शोषण किया जाता रहा है। भारतीय पुरुषों ने महिलाओं को हमेशा से ही उपभोग की वस्तु से अधिक और कुछ नहीं समझा है। कभी जबरन तो कभी उसे बहला-फुसलाकर उन्होंने अपने हितों को साधने का प्रयत्न किया है। किसी कठोर कानून की अनुपस्थिति के कारण महिलाओं के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने वाला कोई बच ना सके इसीलिए इस प्रस्ताव का कानूनी रूप लेना बहुत जरूरी है।


उपरोक्त पहलुओं पर गहराई से विचार करने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ना अत्यंत आवश्यक है, जैसे:


1. साथ-साथ पढ़ने और समय व्यतीत करने के कारण किशोरों और किशोरियों के बीच आकर्षण विकसित होना लाजिमी है। अगर इस आकर्षण के बल पर वह शारीरिक संबंध बनाते हैं तो इसके लिए केवल किशोर को जिम्मेदार ठहराना कहां तक जायज है?

2. युवतियों को समाज में एक सुरक्षित वातावरण देने में यह प्रस्ताव कितना उपयोगी सिद्ध हो सकता है?

3. भारत में जब भी कोई कानून बनता है तो सबसे पहले महिलाओं के हितों को ध्यान में रखा जाता है, ऐसे में क्या पुरुषों के हित बाधित नहीं होते?

4. प्रस्ताव पारित होने के बाद जब यह कानून का रूप ले लेगा तो इसके सफल होने की कितनी गारंटी है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


यौन संबंधों की आयु सीमा में वृद्धि एकतरफा प्रस्ताव या सामाजिक जरूरत


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “एकतरफा प्रस्ताव” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व एकतरफा प्रस्ताव – Jagran Junction Forum लिख कर जारी करें।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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