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कार्टून विवाद – राजनीतिक पैंतरेबाजी या महापुरुषों की अस्मिता का सवाल ?

जागरण जंक्शन फोरम
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प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाए गए बाबा साहब अंबेडकर के विवादित कार्टून पर दिनोंदिन बहस तेज होती जा रही है। एनसीईआरटी की पुस्तक में प्रकाशित इस विवादित कार्टून का मसला अब तूल पकड़ने लगा है। कार्टून अभिव्यक्ति की एक ऐसी विधा है जिसकी सहायता से एक कार्टूनिस्ट सामाजिक, राजनैतिक या अन्य मसलों पर कटाक्ष करते हुए अपनी बात कहता है। लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की आजादी होती है और यह अभिव्यक्ति किसी भी माध्यम से हो सकती है। बशर्ते इससे किसी के सम्मान को ठेस ना पहुंचे। हालांकि सरकार ने पाठ्य पुस्तकों से इस कार्टून को हटाए जाने का आदेश जारी कर दिया है लेकिन यहां यह सवाल उठता है कि क्या सच में यह कार्टून अपमानजनक है या फिर इसके विरोध के पीछे कुछ और कारण है?


प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर, जिन्हें आज के दौर के कार्टूनिस्ट अपना आदर्श मानते हैं, के द्वारा बनाए गए इस विवादित कार्टून का विरोध करने वाले लोगों का यह साफ कहना है कि इस कार्टून के माध्यम से बाबा साहब अंबेडकर, जो संविधान सभा के अध्यक्ष थे, का अपमान किया गया है। इस कार्टून में यह दर्शाया गया है कि बाबा साहब एक घोंघे के ऊपर बैठे हैं, जिसे संविधान का नाम दिया गया, और उनके पीछे चाबुक लिए जवाहरलाल नेहरू चल रहे हैं। यह कार्टून बाबा साहब अंबेडकर के संविधान सभा अध्यक्ष होने जैसी काबीलियत पर आघात करता है। बाबा साहब दलित नेता थे इसीलिए उनके माध्यम से दलितों पर निशाना साधा जा रहा है। संविधान बनने में हुई देरी के लिए पूरी तरह भीम राव अंबेडकर को ही दोषी ठहराया जाना कतई सहनीय नहीं है।


वहीं दूसरी ओर इस विवाद को गलत ठहराने वाले लोगों का कहना है कि 1946 में प्रकाशित इस कार्टून पर अब बहस करना निरर्थक है। वैसे भी यह कोई यह पहला मसला नहीं है जब किसी प्रख्यात शख्स को कार्टून में उतार कर कार्टूनिस्ट ने व्यंग्यात्मक तरीके से अपना दृष्टिकोण सिद्ध किया है। इससे पहले शंकर द्वारा ही महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू आदि के कार्टून बनाए गए हैं, लेकिन उनका विरोध किसी ने नहीं किया। कार्टून जैसी विधा में प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कही जाती है। अगर चाबुक और घोंघा किसी को आहत करता है तो ऐसे में शायद सभी कार्टून अभद्र और अपमानजनक हैं। इस कार्टून का उद्देश्य संविधान बनने में हुई देरी के प्रति विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करना है। उल्लेखनीय है कि भारत की संविधान सभा ने दुनिया की अन्य संविधान सभाओं की तुलना में ज्यादा गहरी और विस्तृत चर्चा की थी, जिसकी वजह से संविधान बनने में देरी हुई। और जहां तक तथाकथित दलित वर्ग की बात है तो बाबा साहब एक अनुभवी, काबिल और पूरी तरह सक्षम शख्स थे। उन्हें दलित या पिछड़ा कहना किसी भी रूप में सही नहीं है। इसीलिए इस कार्टून का दलितों से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। बल्कि सच तो यह है कि बाबा साहब अंबेडकर का नाम लेकर राजनीतिज्ञ अपने हित साधना चाहते हैं, क्योंकि वह नहीं चाहते कि भविष्य में उन पर आधारित किसी कार्टून का निर्माण किया जाए।


उपरोक्त चर्चा और विभिन्न दृष्टिकोणों को आंकने के बाद हमारे सामने निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं जिनका जवाब ढूंढ़ना नितांत आवश्यक है:


1. क्या कार्टून का सहारा लेकर किसी व्यक्ति विशेष की योग्यता पर प्रश्न उठाना सही है?


2. प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाए गए इस कार्टून पर विरोध जाहिर करना संवेदनशील मुद्दा है या इसे भी राजनीति के लिए उठाया जा रहा है?


3. क्या बाबा साहब अंबेडकर वाला कार्टून एक बहाना है और सांसदों की असली परेशानी कार्टूनों में उभरती उनकी खुद की छवि है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


कार्टून विवाद – राजनीतिक पैंतरेबाजी या महापुरुषों की अस्मिता का सवाल ?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “कार्टून विवाद” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व कार्टून विवाद – Jagran Junction Forum लिख कर जारी करें।


2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार



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