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सांसदों पर टीम अन्ना की टिप्पणी – सच्चाई या विशेषाधिकार हनन?

जागरण जंक्शन फोरम
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साल 2011 में भारत ने अन्ना हजारे के अनशन की जो मिसाल देखी थी वह इस साल की शुरूआत में अन्ना हजारे की तबीयत खराब होने की वजह से कहीं खटाई में पड़ गई थी लेकिन इसी महीने जंतर-मंतर पर एक दिन के अनशन के दौरान अन्ना हजारे ने अपने तेवर एक बार फिर दिखाए। इस बार अन्ना हजारे के तेवर बेहद गरम थे। अन्ना टीम की तरफ से सांसदों पर यह टिप्पणी की गई कि संसद में ऐसे लोग बैठे हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।


यूं तो इस टिप्पणी से टीम अन्ना संसद में बैठे उन मंत्रियों की तरफ इशारा करना चाहती थी जिन पर रेप, हत्या जैसे गंभीर आपाराधिक मामले दर्ज हैं लेकिन कुछ नेताओं ने इस बयान को संसद की गरिमा और विशेषाधिकार का हनन माना और शरद यादव, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने टीम अन्ना पर विशेषाधिकार प्रस्ताव पास करा उन्हें संसद में मुलजिम की तरह खड़ा करने की सिफारिश की। हालांकि बाद में संसद ने उन्हें केवल चेतावनी जारी कर मामले का पटाक्षेप करने की कोशिश की किंतु फिर भी पूरे देश में यह मामला वाद-विवाद और बहस केंद्रित हो गया है।


इस मामले में अन्ना टीम का मानना है कि यह संसद के विशेषाधिकार का मसला नहीं है। इस संदर्भ में अरविंद केजरीवाल का बयान कि “संविधान जनता द्वारा बनाया गया और जनता के लिए है। संसद को विशेषाधिकार भी जनता ने ही दिया है तो फिर विशेषाधिकार से ही जनता को संसद में मुलजिम बनाने का मतलब ही नहीं उठता” इस पूरे घटनाक्रम को और भी दिलचस्प बना देता है।


पूरे मसले पर टीम अन्ना का कहना है कि “आए दिन भ्रष्टाचारियों और अनैतिक कार्यों में लिप्त नेताओं की पोल खुलती है, कैग की रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है कि कई नेता जो संसद में बैठे हैं वह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं फिर भी किसी पर कोई कार्यवाही नहीं होती। ऐसे में अगर जनता यह कहती है कि संसद में चोर-डकैत बैठते हैं तो इसमें गलत क्या है।”


जबकि इसके विपरीत शरद यादव, दिग्विजय सिंह सहित कई और नेताओं का मानना है कि टीम अन्ना संसद की गरिमा के साथ खिलवाड़ कर रही है। टीम अन्ना का बयान लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली और मर्यादा का उल्लंघन है। टीम अन्ना तानाशाही की परिपाटी स्थापित करने की कोशिश कर रही है जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए घातक है। इन नेताओं का मानना था कि टीम अन्ना पर विशेषाधिकार हनन का केस चलाया जाना चाहिए।


उपरोक्त बहस के प्रकाश में कुछ सवाल हमारे सामने उठते हैं जिन पर सारे देश को विचार-विमर्श करने की जरूरत है, जैसे:


1. क्या टीम अन्ना द्वारा सांसदों पर की गई टिप्पणी को जायज ठहराया जा सकता है?

2. क्या संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में इस तरह के बयान तानाशाही की प्रवृत्ति के संकेतक हैं?

3. क्या संसद को टीम अन्ना पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाना चाहिए?

4. क्या इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच मूल मुद्दा यानि जन लोकपाल का मुद्दा परिदृश्य से ओझल हो गया है?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


सांसदों पर टीम अन्ना की टिप्पणी – सच्चाई या विशेषाधिकार हनन ?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “संसद बनाम टीम अन्ना” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व संसद बनाम टीम अन्ना – Jagran Junction Forum लिख कर जारी करें।

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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