- 157 Posts
- 2979 Comments
आजाद भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ा आंदोलन यकायक समाप्त होने के साथ ही अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाता है। मुंबई में अन्ना हज़ारे और उनकी टीम द्वारा मजबूत लोकपाल के लिए किया जा रहा आंदोलन कुछ गंभीर कारणों से अचानक वापस ले लिया गया वह भी अनशन के लिए निर्धारित तीन दिन की अवधि के पूर्व ही जबकि दूसरी ओर सरकार द्वारा उनकी मांगों को धता बताते हुए एक ऐसा लोकपाल विधेयक पारित करवाया जा रहा था जिसे नख-दंत विहीन लोकपाल कहना ज्यादा उपयुक्त होगा।
ऐसे हालात में अन्ना हज़ारे और उनकी टीम द्वारा संचालित आंदोलन की प्रासंगिकता, उसके प्रभाव और आंदोलन के भविष्य को लेकर कई बातें की जाने लगी हैं। इस मुहिम के विरोधी इस पर ये आरोप लगा रहे हैं कि अन्ना और उनकी टीम केवल अपने स्वार्थ के लिए आंदोलन का संचालन कर रही थी और उसका जनता के हितों से कोई सरोकार नहीं था। यही कारण है कि मुंबई में अनशन के दौरान उन्हें कोई जनसमर्थन नहीं प्राप्त हुआ जबकि उनका दावा था कि उनका मुद्दा पूरे भारत की जनता का मुद्दा है। अन्ना की मुहिम के विरोधियों के अनुसार, अन्ना और उनकी टीम गुप्त राजनीतिक एजेंडे के साथ भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर अपना जनाधार बढ़ाने में लगी थी। यही कारण है कि मुंबई तक आते-आते उनकी मंशा जनता के सामने खुल गई और लोगों ने उनसे किनारा कर लिया।
जबकि दूसरी ओर इस मुहिम के समर्थक कहते हैं कि मुंबई में आंदोलन को स्थगित करने का ये अर्थ नहीं समझा जाना चाहिए कि आंदोलन असफल हो गया बल्कि ये एक विराम है जिसे उपयुक्त रणनीति के साथ पुनः शुरू किया जाएगा। कई लोग तो इसे गांधी जी की संघर्ष-विराम-संघर्ष की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। समर्थकों का मानना है कि इस आंदोलन के कारण ही आज भारत में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना है। इसी आंदोलन का परिणाम है सरकार को मजबूर होकर कमजोर ही सही लेकिन लोकपाल कानून लाने की दिशा में गंभीर प्रयास करना पड़ रहा है।
उपरोक्त के आलोक में कुछ बेहद जरूरी सवालात सामने आते हैं जिन पर चर्चा होनी ही चाहिए, जैसे:
1. क्या अन्ना और उनकी टीम द्वारा चलाया गया आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो चुका है?
2. क्या इस आंदोलन के कारण ही सरकार को लोकपाल विधेयक लाने पर मजबूर होना पड़ा?
3. मुंबई में आंदोलन को स्थगित करने का क्या मतलब निकाला जाना चाहिए?
4. इस आंदोलन के दूरगामी परिणाम के विषय में क्या कयास लगाया जा सकता है?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम मेंअपने पाठकों से इस बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:
क्या आंदोलन की तात्कालिक विफलता उसकी प्रासंगिकता खत्म करती है?
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।
नोट: 1.यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “आंदोलन की तात्कालिक विफलता” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व आंदोलन की तात्कालिक विफलता – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें।
2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
Read Comments