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क्या हम वाकई आजाद हैं ?

जागरण जंक्शन फोरम
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भारत अपनी आजादी की 64वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर भारतवासी के लिए ये गर्व की बात है। यह दिन उसके भीतर अपने आप को स्वतंत्र, संप्रभु और खुशहाल समझने का भाव भी जगाता है। सदियों की दासता के बाद प्राप्त आजादी का एहसास वैसे भी किसी को ताजगी और उत्साह से लबरेज कर देने में सक्षम है साथ ही निरंतर विकसित होते भारत की तस्वीर एक खुशनुमा नजारा पेश करती है।


लेकिन इस आजाद भारत की दो तस्वीरें हैं। एक तरफ आजाद, समृद्ध व खुशहाल देश की बात की जाती है। हर ओर चमकता भारत जहां हर नागरिक जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूर्ण करने की स्थिति से भी ऊपर उठकर समृद्ध जिंदगी जी रहा हो। दुख-विपन्नता उसके लिए स्वप्न समान हो चुके हों। आजादी के मायने के तौर पर हम ऐसी संवैधानिक व्यवस्था की बात करते हैं, जिसमें हर नागरिक के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छानुसार जीविकोपार्जन, और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार मौजूद हो। भारत अब विकसित देशों की कतार में शामिल होने को आतुर है। मेट्रो शहरों की चकाचौंध और उच्च जीवन स्तर बदलते भारत के गवाह हैं। लग्जरी गाड़ियां और ऊंची अट्टालिकाएं वाकई भारत के विकसित होने का जयघोष करती नजर आती हैं।


लेकिन दूसरी तस्वीर इतनी उजली नहीं है। अशिक्षा, कुपोषण, नागरिक स्वतंत्रताओं का हनन, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी की भयावहता हमें देश की कुछ और ही सूरत दिखाती है। देश की एक तिहाई आबादी आज भी दो वक्त की रोटी जुटाने में सारी जिंदगी बिता देती है और कइयों को तो फिर भी निवाला पूरा नहीं पड़ता। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की दुखद हालत किसी से छुपी नहीं है। अधिकतर सरकारी कल्याणकारी योजनाएं बस छलावा मात्र प्रतीत होती हैं। देश में भ्रष्टाचार की ऐसी आंधी आई हुई है कि आम जनता त्राहिमाम कर रही है। जनता के मूलभूत अधिकारों को सरेआम कुचला जा रहा है। अमीर और भी ज्यादा संपन्न हो रहे हैं, तो गरीब खाने को भी तरस रहा है। अनियमित और असमान वितरण, व्यवस्था पर पूरी तरह कब्जा जमा चुका है। ऐसे में आबादी के बड़े हिस्से के लिए आजादी की बात एक मखौल से ज्यादा और कुछ नहीं नजर आती। ऐसे हालात में, आजादी के जश्न की बात करना एक टीस पैदा करता है।


इन स्थितियों में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनका समाधान खोजा जाना जरूरी है, जैसे:


1. क्या हम भारतवासियों को आजादी अपने संपूर्ण संदर्भों में प्राप्त हो चुकी है?

2. क्या देश को केवल राजनीतिक आजादी मिली है और देश के लोग अब भी पूर्ण आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं?

3. क्या देश के नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदान किए गए मूलभूत अधिकार सही अर्थों में हासिल हैं?

4. आजादी के छह दशक बाद भी भारत अराजकता, गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण जैसे तमाम अभिशापों से मुक्त नहीं हो सका है, आखिर क्यों?


जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से राष्ट्रहित और व्यापक जनहित के इसी मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है। इस बार का मुद्दा है:


क्या हम वाकई आजाद हैं?


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं।


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें। उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “आजादी एक छलावा” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व आजादी एक छलावा – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें।

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है। आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं।


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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