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माया की माया – नेता खुशहाल, जनता बदहाल !!

जागरण जंक्शन फोरम
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भारत में सबसे अधिक संसदीय और विधानसभाई सीटों के साथ उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है, जिसकी राजनीति में सर्वप्रमुख होने का सपना, हर राजनीतिक दल देखता है ताकि वह देश की केंद्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसे दल निरंतर इसी कोशिश में हैं कि किसी भी तरह वे उत्तर प्रदेश में अपने खोए हुए जनाधार को प्राप्त कर लें. हालांकि हाल के सालों में सत्ता की जंग के मुख्य खिलाड़ी बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ही रहे हैं.


उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में विधान सभा चुनाव होने हैं. फिलहाल यहां मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार चल रही हैं. किंतु चुनावों के लिए सभी राजनीतिक दलों ने तैयारियां करनी शुरू कर दी हैं. राजनीतिक पैंतरेबाजी का दौर जोरों पर है. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी प्रदेश भ्रमण कर गोलबंदी कर रहे हैं तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी फिर सत्तासीन होने के ख्वाब में माया सरकार के विरुद्ध आरोपों की झड़ी लगा रहे हैं. उधर भाजपा उत्तर प्रदेश में वापसी के लिए उमा भारती के सहारे मैदान में उतर रही है.


इन सबके बीच मायावती सरकार के ऊपर कुछ ऐसे आरोप हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता. यदि हम मीडिया की खबरों पर भरोसा करें तो लगता है मानो उत्तर प्रदेश अपराध प्रदेश बन गया है. राज्य में बलात्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से काफी बढ़ोत्तरी हुई है. मासूम बच्चों, स्त्रियों के ऊपर अमानवीय अत्याचार के तमाम मामले सामने आ रहे हैं. नोएडा एक्सटेंशन व एक्सप्रेस-वे जैसी परियोजनाओं के लिए गलत ढंग से भूमि अधिग्रहण के आरोप सरकार पर सवालिया निशान लगा रहे हैं.


विरोधी, माया सरकार पर अपने मंत्रियों व विधायकों को खुली छूट देने का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री मायावती प्रदेश में अपना शिकंजा मजबूत करने के लिए तानाशाही रवैये पर उतर चुकी हैं और तमाम तरह की वसूली और भ्रष्टाचार द्वारा अपनी जेब भर रही हैं.


विपक्षियों का मानना है कि मुख्यमंत्री मायावती सर्वजनहिताय और सर्व कल्याण के नाम पर सत्ता में आईं किंतु उनके शासनकाल में प्रदेश में दलितों व पिछड़े तबकों का शोषण बढ़ा, दबंग अधिक मुखर होकर अत्याचार करने लगे, प्रदेश में अपराध का ग्राफ काफी ऊपर चढ़ा हुआ है, भूख, बीमारी, बेकारी जैसी समस्याओं का कोई इलाज नहीं ढूंढ़ा गया बल्कि सुशासन के नाम अराजकता को समर्थन दिया गया.


लेकिन दूसरी तरफ तर्क यह भी हैं कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार मायावती के राज्य में बलात्कार के मामले उनकी पूर्ववर्ती सरकारों से कम हुए हैं. इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश देश के पांच अच्छे राज्यों की सूची में चौथे स्थान पर है. साथ ही मुख्यमंत्री मायावती ने अपराधों में लिप्त पाए जाने पर अपने 12 विधायकों, एक मंत्री और एक सांसद को जेल भिजवा दिया है, जबकि ऐसा इससे पहले किसी अन्य मुख्यमंत्री ने नहीं किया था. लिहाजा उन पर अंगुलियां उठाना गलत है.


इन सबके बीच भुगतना तो जनता को ही है. विपक्षी चाहे जो आरोप लगाएं और मायावती सरकार चाहे जिस तरह उसका प्रतिकार करे, आखिर पिस तो जनता रही है. राजनीतिक दलों की आपसी लड़ाई में बेचारी जनता क्यों मारी जाए!


आखिर क्या है जमीनी असलियत? क्या हैं वे बिंदु जिन पर व्यापक चर्चा कर उत्तर प्रदेश और मायावती सरकार की स्थिति की समीक्षा की जा सकती है ताकि राज्य की तस्वीर थोड़ी साफ हो सके, जैसे किः


1. क्या सचमुच मायावती की सरकार शासन से अपना नियंत्रण खो चुकी है? या यह सिर्फ़ राजनीतिक दुष्प्रचार है?

2. उत्तर प्रदेश में अचानक बलात्कार और अपराध को लेकर इतना शोर क्यों मच रहा है?

3. क्या मुख्यमंत्री मायावती अपने दीर्घकालीन हितों को समझ पाने में अक्षम हैं?

4. कहीं मुख्यमंत्री मायावती को अपने दलित होने का खामियाजा तो नहीं भुगतना पड़ रहा है?

5. क्या उत्तर प्रदेश में वाकई राजनीति को अपराध से अलग रखना नामुमकिन है?


जागरणजंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से राष्ट्रहित और व्यापक जनहित केइसी मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है. इस बार का मुद्दा है:


मायाकीमायानेताखुशहाल, जनताबदहाल !!


आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जाहिर कर सकते हैं.


नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें. उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “उत्तर प्रदेश में अत्याचार” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व उत्तर प्रदेश में अत्याचार – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें.

2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गई है. आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं.


धन्यवाद

जागरण जंक्शन परिवार


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