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सरकार पर दबाव डाल कर एक सशक्त लोकपाल बनवाने की सिविल सोसायटी की कोशिश नाकाम होती दिख रही है. भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाली सरकार किसी भी हालत में मजबूत सक्षम और स्वतंत्र लोकपाल बनाए जाने की पक्षधर नहीं रही है और उसने सिविल सोसायटी के साथ हुई संयुक्त प्रारूप समिति की आखिरी बैठक में अपना मंतव्य जाहिर भी कर दिया.
उल्लेखनीय है कि इस बैठक में दो ड्राफ्ट तैयार किए गए जिसमे से एक में सिविल सोसायटी द्वारा दिए गए सुझाव हैं जबकि दूसरे में सरकारी पक्ष द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव शामिल हैं लेकिन दोनों ड्राफ्टों की मूलभूत विशेषताओं में बड़ा फर्क माना जा रहा है. सरकार किसी भी हालत में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने को तैयार नहीं है. उसकी मंशा ये भी है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों सहित सांसदों का संसद के अंदर किया गया किसी भी तरह का भ्रष्टाचार लोकपाल के दायरे से बाहर रहे. सरकार चाहती है कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी समिति में ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लोग हों. इसके अलावा सरकार लोकपाल को पूरी तरह सरकारी मशीनरी पर आश्रित बनाए रखना चाहती है.
इसके ठीक विपरीत सिविल सोसायटी ने एक बेहद मजबूत और सक्षम भ्रष्टाचार निरोधक तंत्र तैयार करने की दिशा में पहल करते हुए प्रारूप तैयार किया है जिसके दायरे में प्रधानमंत्री, अन्य मंत्री व सांसदों सहित उच्चतम न्यायपालिका के न्यायाधीश व तमाम सरकारी अधिकारी शामिल किए गए हैं. यह प्रारूप एक सशक्त लोकपाल का आधार तैयार करता है जिसमें जिला स्तर पर लोकपाल समितियों के गठन की परिकल्पना की गयी है. साथ ही लोकपाल की नियुक्ति के लिए बनी समिति में सिविल सोसायटी वाले ज्यादा से ज्यादा गैर राजनीतिक लोगों को रखने के पक्ष में हैं.
ऐसे में सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगना स्वाभाविक है. आखिर सरकार क्यों एक थके हारे लोकपाल के सृजन की पक्षधरता कर रही है. भारत राष्ट्र की अस्मिता पर प्रहार करता भ्रष्टाचार निरंतर देश को खोखला करता जा रहा है तब भी सरकार उसी भ्रष्टाचार को पोषित करने के पक्ष में दिखाई दे रही है. निश्चित रूप से यह एक चिंताजनक और निंदनीय कृत्य है.
उपरोक्त के आलोक में राष्ट्रहित व जनहित संबंधी कई ऐसे चिंतनीय प्रश्न हैं जिन पर विचार कर समाधान ढूंढ़ा जाना अनिवार्य है यथा,
1. सरकार द्वारा कड़े लोकपाल कानून के विरोध का वास्तविक कारण क्या है?
2. प्रधानमंत्री को लोकपाल द्वारा जांच के दायरे से बाहर रखना कहॉ तक न्यायसंगत है?
3. क्या नख-दंत विहीन लोकपाल भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण कायम कर सकेगा?
4. सरकार का सिविल सोसायटी पर लोकपाल के नाम लोकतंत्र को अपहृत करने का आरोप किस सीमा तक युक्तिसंगत माना जा सकता है?
5. क्या व्यवस्था के सभी पायदानों से ऊपर व स्वतंत्र लोकपाल संसदीय लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांतों का उल्लंघन करता है?
6. और अंतिम महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या लोकपाल भ्रष्टाचार के समूल नाश का सबसे प्रभावी उपक्रम सिद्ध होने में सक्षम होगा?
जागरण जंक्शन इस बार के फोरम में अपने पाठकों से राष्ट्रहित और व्यापक जनहित के इसी मुद्दे पर विचार रखे जाने की अपेक्षा करता है. इस बार का मुद्दा है:
कमजोर लोकपाल कैसे रोकेगा भ्रष्टाचार ?
आप उपरोक्त मुद्दे पर अपने विचार स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जारी कर सकते हैं.
नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें. उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक “नहीं चाहती सरकार अपने ऊपर निगाहदार” है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व नहीं चाहती सरकार अपने ऊपर निगाहदार – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें.
2. पाठकों की सुविधा के लिए Junction Forum नामक नयी कैटगरी भी सृजित की गयी है. आप प्रकाशित करने के पूर्व इस कैटगरी का भी चयन कर सकते हैं.
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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