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“अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने कहा है कि अन्ना हजारे ‘ब्लैकमेल’ करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. वहीं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने वाले अन्ना के साथियों पर सवाल उठाने के साथ उनकी खिल्ली भी उड़ाई है.”
अन्ना हज़ारे के आमरण अनशन और तमाम मशहूर हस्तियों द्वारा चलाए गए भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन की कई कारणों का हवाला देते हुए निंदा की जा रही है. आमरण अनशन का तरीका इस्तेमाल करने को “ब्लैकमेलिंग” की संज्ञा तक दी जाने लगी है. विरोध करने वालों का तर्क है कि इस प्रकार अपनी मांग मनवाने का तरीका लोकतंत्र के खिलाफ है और अगर इसे बढ़ावा दिया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है.
जागरण जंक्शन अपने सभी पाठकों से सवाल करता है कि क्या वाकई अन्ना हज़ारे का भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनाया गया आमरण अनशन का तरीका ब्लैकमेलिंग के दायरे में आता है? यदि कोई सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हो और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रही हो तो क्या जनता को चुप रहकर देखना चाहिए और लोकतंत्र को बचाने के लिए दबाव बनाने की जिद छोड़ देनी चाहिए? लोकतंत्र के नाम पर जनता को शोषित किया जाना सही है या जनता की आवाज ही लोकतंत्र है?
राष्ट्रहित के इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर आप अपना जवाब स्वतंत्र ब्लॉग या टिप्पणी लिख कर जारी कर सकते हैं?
नोट: 1. यदि आप उपरोक्त मुद्दे पर अपना ब्लॉग लिख रहे हों तो कृपया शीर्षक में अंग्रेजी में “Jagran Junction Forum” अवश्य लिखें. उदाहरण के तौर पर यदि आपका शीर्षक लोकतंत्र और ब्लैकमेल है तो इसे प्रकाशित करने के पूर्व लोकतंत्र और ब्लैकमेल – Jagran JunctionForum लिख कर जारी करें.
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